वर्णमाला-
वर्णों के व्यवस्थित समूह को 'वर्णमाला' कहते हैं. मूल वर्णों की संख्या 44 है. कुल वर्णों की संख्या 52 है.
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ,अं,अ:
क, ख, ग, घ, ङ, च, छ, ज, झ, ञ
ट, ठ, ड, ढ, ण, ड़, ढ़, त, थ, द, ध, न
प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व
श, ष, स,ह, क्ष, त्र, ज्ञ, श्र
वर्ण के प्रकार-
वर्ण दो प्रकार के होते हैं, स्वर व व्यंजन.
1.स्वर- जिन वर्णों का उच्चारण बिना किसी अवरोध के तथा बिना किसी दूसरे वर्ण की सहायता से होता है, उन्हें स्वर कहते हैं. इनकी कुल संख्या 11 है.
हिंदी में स्वर इस प्रकार हैं- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ
नोट:- अनुस्वार (अं)- इसका प्रयोग पंचम वर्ण के स्थान पर होता है. इसका चिन्ह (ं) है. जैसे- सम्भव=संभव, संजय=संजय, गंगा =गंगा.
नोट:- विसर्ग (अ:)- इसका उच्चारण ह् के समान होता है. इसका चिह्न (ः) है. जैसे-अतः, प्रातः.
:- अनुस्वार अं, विसर्ग अ: दोनों स्वर भी हैं; व्यंजन भी हैं.
:- मात्रा या उच्चारण की अवधि के आधार पर स्वर तीन प्रकार के होते हैं-
1.ह्रस्व स्वर
2.दीर्घ स्वर
3.प्लुत स्वर
ह्रस्व स्वर- जिन स्वरों के उच्चारण में कम से कम समय लगता है, उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं. इनकी संख्या 4 है- अ,इ,उ,ऋ. इन्हें मूल स्वर भी कहते हैं.
दीर्घ स्वर- जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से अधिक समय लगता है, उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं. इनकी संख्या 7 है- आ,ई,ऊ,ए, ऐ, ओ, औ.
प्लुत स्वर- जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वरों से भी अधिक समय लगता है. उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं. प्रायः इनका प्रयोग दूर से बुलाने के लिए किया जाता है;
जैसे- हे राम !
इन्हें त्रिमात्रिक स्वर भी कहते हैं-
जैसे- हे राsssम. नाटक के संवादों में इनका प्रयोग किया जाता है.
हिंदी स्वरों का वर्गीकरण: उच्चारण की दृष्टि से
अग्र स्वर- जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का अगला भाग ऊपर-नीचे उठता है उन्हें अग्र स्वर कहते हैं- इ, ई, ए, ऐ.
मध्य स्वर- जीभ के मध्य भाग से.''अ' स्वर मध्य स्वर है. इसके उच्चारण में जीभ का मध्य भाग थोड़ा-सा ऊपर उठता है.
पश्च स्वर- जीभ के पिछले भाग से. जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का पिछला भाग सामान्य स्थिति से ऊपर उठता है, उन्हें पश्च स्वर कहते हैं- आ, उ, ऊ, ओ, औ.
संवृत स्वर- मुंह कम खुला- इनके उच्चारण में मुख सबसे कम खुलता है, इ, ई, उ, ऊ.
विवृत स्वर- मुंह अधिक खुला- इनके उच्चारण में मुख सबसे अधिक खुलता है, अ, आ, ए, ऐ, ओ, औ.
स्वरों का उच्चारण

नोट:- 'ऋ' का प्रयोग केवल (संस्कृत) शब्दों में ही होता है, जैसे- ऋण, ऋषि, ऋतु आदि.
नोट:- आगत स्वर- (ऑ)- हिंदी में अंग्रेजी व अनेक यूरोपीय भाषाओं से अनेक शब्द आ गए हैं, जो आज हिंदी के अपने बनकर रह गए हैं, इन्हें आगत स्वर कहते हैं.
जैसे- copy, doctor, coffee आदि शब्दों की 'o' ध्वनि न तो हिंदी की (ओ) है, और न ही (औ). इनका उच्चारण इन दोनों के मध्य में से ही कंही होता है. इन आगत शब्दों को (ऑ) स्वर से लिखा जाता है- copy (कॉपी), doctor (डॉक्टर), coffee (कॉफ़ी) आदि यही इनका शुद्ध रूप है.
मात्रा-विचार
मात्रा- जब स्वरों का प्रयोग व्यंजनों के साथ मिलकर किया जाता है, तब उनका स्वरूप बदल जाता है और उन्हें 'मात्रा' कहते हैं-

2.व्यंजन- जिन ध्वनियों का उच्चारण करते समय श्वास मुख विवर के कंठ तालु आदि किसी अवयव से बाधित होकर निकलती है, उन्हें व्यंजन कहते हैं. इनकी कुल संख्या 33 मानी जाती है. द्विगुण व्यंजन ड़, ढ़ को जोड़ देने पर इनकी संख्या 35 हो जाती है.
व्यंजन के भेद
व्यंजन के 5 भेद होते हैं-
1.स्पर्श
2.स्पर्श-संघर्षी
3.अंत:स्थ
4.ऊष्म (संघर्षी)
5.संयुक्त
1.स्पर्श- जो वर्ण मुख के विभिन्न भागों में जिह्वा के स्पर्श से बोले जाते हैं. इन्हें स्पर्श व्यंजन कहते हैं.

2.स्पर्श-संघर्षी - कुछ ध्वनियों में जीभ पहले तो उच्चारण स्थान को स्पर्श
करती है, फिर वहां से हटकर उच्चारण स्थान के इतना निकट रह जाती है,
कि वायु को घर्षण करते हुए ही बाहर निकलना पड़ता है; अर्थात इन
ध्वनियों के उच्चारण में स्पर्श भी होता है और घर्षण भी. अतः यह स्पर्श
संघर्षी व्यंजन कहे जाते हैं.

3.अंत:स्थ- जिन व्यंजनों के उच्चारण में श्वास का अवरोध बहुत ही कम
होता है उन्हें कहते हैं -
य- (सघोष अल्पप्राण, तालव्य, उच्चारण स्थान- तालु)
र- (सघोष अल्पप्राण, वर्त्स्य, उच्चारण स्थान- दंतमूल)
ल- (सघोष अल्पप्राण, वर्त्स्य, उच्चारण स्थान- दंतमूल)
व- (सघोष अल्पप्राण, दंतोष्ठ्य, उच्चारण स्थान- निचले होंठ और ऊपर
के दाँत)
4.ऊष्म (संघर्षी)- जिन व्यंजनों के उच्चारण में श्वास रगड़ खाकर निकलती है और रगड़ के कारण श्वास में कुछ उष्मा (गर्मी) उत्पन्न होती है. इस स्थिति में जो व्यंजन उच्चारित किए जाते हैं; ऊष्म संघर्षी व्यंजन कहे जाते हैं;संस्कृत में इन्हीं व्यंजनों को ऊष्म ध्वनियां कहते हैं.
5.संयुक्त- दो व्यंजनों के योग से बने हुए व्यंजनों को 'संयुक्त-व्यंजन
कहते हैं-
क् और ष के योग से बना हुआ- क्ष
त् और र के योग से बना हुआ- त्र
ज् और ञ के योग से बना हुआ- ज्ञ
श और र के योग से बना हुआ- श्र
नोट:- अल्पप्राण - प्राण का अर्थ है 'वायु'. ये वे व्यंजन है जिनके उच्चारण में फेफड़ों से बाहर निकलने वाली वायु की मात्रा कम होती है. प्रत्येक वर्ग में प्रथम, तृतीय, पंचम वर्ण तथा य, र, ल, व.
नोट:- महाप्राण- यह वह व्यंजन है जिनके उच्चारण में फेफड़ों से बाहर निकलने वाली वायु की मात्रा अधिक होती है. प्रत्येक वर्ग के द्वितीय और चतुर्थ वर्ण तथा श, ष,स, ह.
नोट:- अघोष व्यंजन- जिन ध्वनियों के उच्चारण में स्वरतन्त्रियों में कंपन नहीं होती है. प्रत्येक वर्ग के प्रथम और द्वितीय वर्ण तथा फ़, ष, श, स अघोष हैं.
नोट:- सघोष व्यंजन- जिन ध्वनियों के उच्चारण में स्वरतन्त्रियों में कंपन होता है. प्रत्येक वर्गों के तृतीय ,चतुर्थ तथा पंचम वर्ण तथा ड़,ढ, ज ,य ,र ,ल, व ,ह.

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